मद्रास उच्च न्यायालय ने शनिवार (28 दिसंबर) को चेन्नई में अन्ना विश्वविद्यालय परिसर के अंदर द्वितीय वर्ष की इंजीनियरिंग छात्रा के साथ कथित यौन उत्पीड़न की जांच के लिए महिला आईपीएस अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम का गठन किया।
न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति वी लक्ष्मीनारायणन की खंडपीठ ने शनिवार को विशेष सुनवाई की और घटना की सीबीआई जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर आदेश पारित किए। अदालत ने कहा कि पुलिस और विश्वविद्यालय की ओर से चूक हुई है और इसलिए वह एसआईटी गठित करने के पक्ष में है।
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि पीड़िता के व्यक्तिगत विवरण वाली एफआईआर के लीक होने को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और इसकी जांच की जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि एफआईआर लीक होना पुलिस की ओर से एक गंभीर चूक थी, जिससे पीड़िता और उसके परिवार को आघात पहुंचा। अदालत ने राज्य को पीड़ित लड़की को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का निर्देश दिया, जिसे उन लोगों से वसूला जा सकता है जो कर्तव्य में लापरवाही और एफआईआर लीक करने के लिए जिम्मेदार थे। अदालत ने कहा कि वर्तमान में आदेशित मुआवजा पीड़िता को आपराधिक मामलों में मुआवजा मांगने से नहीं रोकेगा।
लड़की के साहस की सराहना करते हुए अदालत ने अन्ना विश्वविद्यालय को पीड़िता को परामर्श देने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि विश्वविद्यालय को पीड़िता को ट्यूशन फीस, छात्रावास शुल्क, परीक्षा शुल्क, विविध शुल्क आदि सहित कोई भी शुल्क लिए बिना उसकी शिक्षा पूरी करने की अनुमति देनी चाहिए। अदालत ने पुलिस महानिदेशक को पीड़िता और उसके परिवार को अंतरिम सुरक्षा प्रदान करने का भी निर्देश दिया।
सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने आयुक्त द्वारा सरकार से कोई पूर्व अनुमति लिए बिना प्रेस मीटिंग आयोजित करने और मामले पर चर्चा करने के लिए कड़ी आलोचना की। न्यायालय ने आयुक्त के कृत्य की निंदा की और कहा कि कोई भी सेवा नियम या अन्य नियम इसकी अनुमति नहीं देते हैं। न्यायालय ने टिप्पणी की कि इस तरह की प्रेस मीटिंग से बचना चाहिए था और सरकार से कहा कि वह इस मुद्दे पर गौर करे और यदि आवश्यक हो तो उचित कार्रवाई करे।
अदालत ने पुलिस की इस बात के लिए भी आलोचना की कि उसने एफआईआर को असंवेदनशील तरीके से लिखा, जिससे पीड़िता को ही दोषी ठहराने का रास्ता खुल गया। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि पीड़िता, जो केवल 19 वर्ष की थी, को एफआईआर दर्ज करने के समय काउंसलिंग दी जानी चाहिए थी। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि एफआईआर में ही पीड़िता को दोषी ठहराने की प्रकृति थी, जिसमें इस तरह से दर्शाया गया था कि लड़की की हरकतों के कारण ही यह घटना हुई। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि समाज को पीड़िता को दोषी ठहराने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे अपराधियों को फायदा होता है।